करीब 5 साल पहले में भारत में एक व्यापक और भयंकर संक्रामक बीमारी फैलना शुरू हुई थी । इस बीमारी ने नव युवकों को अपने प्रकोप में बहुत तेजी से लिया हैं। इस बीमारी का नाम हैं - अंधभक्ति' ।
इस बीमारी के वायरस के चपेट में आने से व्यक्ति का मानसिक और वैचारिक संतुलन बिगड़ जाता है । इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति धीरे - धीरे अंधभक्त बन जाता। इसीलिए इस बीमारी को अंधभक्ति कहते।
इस बीमारी या इसके वायरस से ग्रसित व्यक्ति में निम्न लक्षण होते हैं: जिद्दी, तर्कहीन, एकपक्षिय, इतिहास का उल्टा दिखना, झूठ भी सच्च लगना, फिल्मी राष्ट्रवाद, फर्जी देशभक्ति का आवेश होना, धार्मिक जड़ता होना, नेता भी देवता लगना, अच्छे दिन का आभास होना, सेक्युलर और नास्तिक भी आंतकवादी लगना, पड़ौसी से नफ़रत करना, आम आदमी में नक्सलवाद दिखना, इत्यादि।
इस बीमारी का संक्रमण व्यक्ति में निम्न तरीकों से होता है: टीवी और मीडिया के प्रोपगंडा से, धार्मिक बाबाओं के भाषण और आसनों से, नेताओं की बोली, कथनों और शब्दों से, सोशल मीडिया के ट्रोलिंग और फर्जी स्टेटस से, रोजगारहीन वातावरण से, अतार्किक और अवैज्ञानिक साहित्य पढ़ने से, भक्तों की फिल्में और टीवी कार्यक्रम देखने से और किसी बात, चीज, घटना और विचार के दूसरे पक्ष को नज़रंदाज़ कर देने से।
इस बीमारी का वायरस सबसे पहले गुजरात के एक व्यक्ति में 2002 में पाया गया था। जिसने सबसे पहले इस राज्य को अपनी चपेट में लिया फिर पिछले 5 साल में 20-22 राज्यों को चपेट में लेते हुए पूरे देश को ग्रसित कर दिया। इस बीमारी का इलाज वोट के टीके से हो सकता है जो 5 साल में एक बार लगता हैं। इस बीमारी के खिलाफ वोट के टीके को एक अभियान के तौर लगाया जाता है जो 11 अप्रैल से 19 मई तक पूरे देशभर में 7 चरणों में चल रहा है जिसका परिणाम 23 मई को आयेगा।
वोट टीकाकरण के अभियान का संचालन कर रही संस्था वोट टीकाकरण आयोग हैं । हालांकि वोट टीकाकरण अभियान के सफल संचालन में इस संस्था की स्वतंत्र, निष्पक्ष और जिम्मेदाराना भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं ये सवाल टीकाकरण अभियान की तैयारी, घोषणा के समय से लेकर इसकी संचालन प्रक्रिया को लेकर उठते रहे हैं। वोट का टीका ऐसी वैक्सीन से लगाया जा रहा को पूर्ण तरीके से सुरक्षित नहीं हैं जिसे ईवीएम कहते हैं। दूसरे देशों में भी वोट टीकाकरण अभियान चलाया जाता है लेकिन वहां उन देशों में इस वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लेकिन भारत में इस वैक्सीन का वोट टीकाकरण अभियान में इस्तेमाल तमाम शिकायतों के बावजूद किया जा रहा है। ऐसे में इस बीमारी के खिलाफ वोट टीकाकरण अभियान की सफलता पर संदेह होता है।
इस बीमारी या इसके वायरस का खात्मा सबसे पहले इस बीमारी या इसके वायरस को फैलाने वाले प्रथम व्यक्ति के सफल इलाज से ही होगा। अगर इस प्रथम व्यक्ति का इलाज वोट टीकाकरण से नहीं हुआ तो इस बीमारी और इसके वायरस को काबू में लाने या इलाज करने का वोट टीकाकरण अभियान अगले 5 साल बाद शायद ही नहीं चले। क्योंकि इस बीमारी और वायरस से ग्रसित अंधभक्त अपनी अंधभक्ति में देश और समाज में स्थापित ऐतिहासिक विचारधारा और व्यवस्था को बदल कर अपनी दक्षिणपंथी, खोखली और अप्रासंगिक विचारधारा और व्यवस्था स्थापित कर सकते। अगर ऐसा हो गया तो देश में घोर अंधकार और अनर्थ हो जायेगा।
मंगलवार, 7 मई 2019
वोट टीकाकरण अभियान
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